फूल से मोहित होकर उसकी ख़ूबसूरती निहारना और सुख लेना , उसके प्रति समर्पण दिखाना प्रेम ( love ) है। परंतु उसे अपने लिएतोड़ने की प्रकृति रखना जुनून या फ़ितूर है ( obsession)
जुनून प्रेम का प्रदूषित अंग है । ये हमेशा होता है , सब में , किसी ना किसी मौक़े पर , बस मात्रा अलग अलग होती है । अधिकार कीभावना ( possessiveness ) भी एक अंग है । ये भावनाएँ सुकून नहीं लेने देगी जब तक रहेगी । निराशा , क्रोध को जन्म देगी ।
वर्तमान समय में हमारे पास जितने अवसर है और रोमांच और आत्मीयता "उँगलियों पर " जितनी आसानी से है ,उसके अनुसार लाज़मीहै उम्मीदों से हताश होने की बहुत अधिक मात्रा होगी।
हम निराशा के अवसर से बचने के लिए ध्यान बाटने की कोशिश करते है जबकि इसका उत्तर हमेशा से निस्सवार्थता ( selflessness) में है ।
यही हम को शांति , सम्मान और आज़ादी का अनुभव करा सकता है भले ही परिस्तिथि पक्ष में हो या नहीं । निस्सवार्थता(Selflessness) आसक्ति (detachment ) ही है या यूँ कहिए उसका एक कार्यान्वयन उपकरण ( implemtation tool ) . यहीमार्ग है जीवन के प्रति समर्पण का , धैर्य और विचारों की स्थिरता का ।
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