क्या जो लड़कर जीता , बस वही महान है ? वही ज़िक्र के काबिल है ? उनका क्या , जो लड़कर हारे ? इतिहास की किताब महाराणाप्रताप से लेकर चंगगेज खानों से भरी पड़ी है । लोग मूर्तियों को मालाओं से ढके जा रहे है , उनके विजय दिवस के जलसे में नाच रहे हैपर उसी भीड़ में उन्ही नाचते लोगों में कोई एक शक्स ऐसा भी तो है जो चुप खड़ा है , नाच नहीं रहा । उस शक्स की कहानी कौनसुनाएगा ?
वही महान कहानियों को पढ़ पढ़कर लोग बाबू से लेकर सिवल सेवा तक पहुँच रहे है । उस मूर्ति को घेरकर नाच रहे है लेकिन दुनियाऐसी नहीं है , उस घेराव के बाहर निकलो तो देखोगे कि कितनी अनगिनत कहानियाँ है हार की , पराजय की , किसी धूम धाम से रहित , लड़ने की और हार जाने की । सन्नाटा है वहाँ मानो इस शोर की ही किसी परछाई में कही छिपे है ।
वो कहानियाँ जब बाहर आएँगी तो हो सकता है कि उन सब विजयों को ओझल कर दे और एक और सच दिखे , एक और इतिहास खड़ाहो आपके सामने जो आपका कॉलर पकड़कर आपसे पूछे
"कौन जीता कौन हारा क्या सच और क्या झूठ? "
- निशांत कुमार । ९ जनवरी
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