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नानी , प्रेम ,भगवान और साथ

Writer: Nishant KumarNishant Kumar

नानी से मिला । कहने लगी, "ख़ाली सा हो गया है , तेरे नाना की चारपाई रहती थी , उनके कपड़े सूखते रहते थे। घर बरामदा भरा रहताथा । दिखे भी वो कई बार " , कहते कहते अपने चाँदी के कड़ों को अपने कार्डिगन के ऊपर लाने लगी , शायद चुबते है , आदत नहीं है , वहाँ लाल हरी चूड़ियाँ जो रहती थी अभी तक , शौक़ था।बड़ा मानवीकरण है ये पिछली बात में शायद आप समझ पाए इसलिए हीशायद मैंने ये बेहद व्यक्तिगत बात साँझा की कि शायद आप समझ पाए जो मुझे कहना है अब आगे।


वो लोग झूठे कहते है कि "अकेलापन अच्छा लगता है , सबकुछ आपके अंदर है " इस तरह की फ़ैन्सी स्पिरिचूऐलिटी वाली बातें क्यूँकिपहला ये कि कही भी सब कुछ नहीं है और दूसरा ये कि हम इंसानों के जींस में ही नहीं है ये, 'अकेलापन' या गेर-साथीपन। हमेशा से हीइंसान साथ या कहें कि साथी तलाशता आया है , सुरक्षा के लिए , शारीरिक सुख के लिए , वर्चव साबित करने के लिए , या साधारणतौर पर आम जीवन गुज़ारने के लिए ही साथी की ज़रूरत रही है ।

तीसरा ये कि कुछ चीजों की रचना हमने कि , जैसे धन को ले लिया जाए पर साथ की , प्रेम की उत्पत्ति अपने आप हुई । और ये इतनाताकतवर हुआ कि इंसान कई बार सब लुटाकर प्रेम के पीछे, साथी के पीछे भागा ।

आपने लोगों को, बड़े पुजारी पंडितों को कहते सुना होगा , कि वो भगवान को पूजता है , मानता है पर क्या आपने कभी सुना ये कहतेहुए कि वो भगवान से प्यार करता है? क्यूँकि भगवान से प्रेम किया जाना मुश्किल है क्यूँकि ये भाव 'साथ' माँगता है , एक रेसिप्रकेशनचैनल , एक कम्यूनिकेशन ब्रिज एक । इसलिए सोचिए इंसान कितना ही भगवान भगवान भी क्यूँ ना करे , कितनी ही लीनता दिखाए , प्रेम वो उसी शिव और राम से करेगा जो बग़ल में उसके साथ उसका हाथ पकड़े बेठा है । और आयी बात जो भगवान की , तो पीछे वो भीनहीं रहे , साथ और प्रेम में , उदाहरण आपके सामने सब ग्रंथ और शास्त्रों में ।

इसलिए प्रेम और साथ सबसे ऊपर आ जाता है और इस रीत को शायद भगवान भी नहीं बदल पाए या यूँ कहु तो बदलना ही नहीं चाहे ।

 
 
 

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